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आदर



: आदर : 

एक तरह से आदर एक विनम्र भाव है। अर्थात् सामाजिक शिष्टाचार। प्रबुद्ध लेखिका एवं सम्पादक मृणाल पाण्डेय मानती हैं कि, ‘‘हर समाज में शिष्टाचार से जुड़े उदात्त मूल्यों की जड़ मनुष्य की आनुवांशिकी जरूरतों में है। मसलन अपनी नस्ल और कबीले का अस्तित्व बरकरार रखना एक आदिम इच्छा है और इसी के साथ बुजुर्गों के प्रति शारीरिक भंगिमा और वाणी द्वारा आदर व्यक्त करना जुड़ा हुआ है। युवाओं के बरअक़्स शारीरिक रूप से अशक़्त और अनाकर्षक होते हुए भी बुजुर्ग लोग हर आदिम समाज में जीवन से जुड़े बहुमूल्य और जीवनरक्षक अनुभवों की एक खान सरीखे होते हैं और उनकी उपस्थिति और निर्देश बच्चों को संस्कारित करने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इसलिए समाज में खास तरह के नियमों द्वारा उनका परिरक्षण और उनके प्रति आदर की अभिव्यक्ति अनिवार्य बने हैं।’’

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