: उत्तर-परिवार :
सबसे पहले ‘उत्तर’ शब्द पर विचार करें, तो यह शब्द अनेकार्थी है, किन्तु हिन्दी में अव्यय के रूप में इसका अर्थ पीछे अथवा बाद होता है। कोई भी समाज, चाहे वह सामंती, पूँजीवादी या समाजवादी हो, पारिवारिक स्थायित्व की संरक्षा एवं एकता में रुचि रखता है। यह विभिन्न तरीकों-‘कानूनी, नैतिक, धार्मिक, आर्थिक, माता-पिता के अधिकार और अनुग्रह को परिभाषित कर’-में परिवार के कार्यों की स्वीकृति प्रदान करता है। लेकिन, समाज की आर्थिक संरचना, परिवार पर गुणात्मक प्रभाव छोड़ती है। पूँजीवाद स्वाभाविक रूप से उन अवश्यंभावी परिणामों से, वैवाहिक एवं पारिवारिक रिश्तों को मुक्त करने में असमर्थ है, जो समाज में निजी सम्पत्ति के नियम के कारण उदित हो जाते हैं। इसके अलावा बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, दैनिक जरूरतों की चीजों में मूल्य-वृद्धि, जीवित रहने की लागत में वृद्धि, महँगी चिकित्सा सेवा और शिक्षा इत्यादि घटनाक्रियाएँ उन रिश्तों को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार, परिवार कल्याण की सतह के नीचे अक्सर नैतिक नपुंसकता छिपी रहती है। नैतिक शुद्धता का सिद्धान्त पृष्ठभूमि में चला जाता है या पूरी तरह भुला दिया जाता है। विशेषतया इस उत्तर शती में, ‘निजी सम्पत्ति का सिद्धान्त अपने विकास की उच्चतम अवस्था में परिवार के सिद्धान्त का विरोधी हो जाता है।’
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