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अन्तरात्मा

--------- अरुण हिंदी शब्दकोश : अन्तरात्मा :  अन्तरात्मा ईश्वर द्वारा निर्मित नहीं है। यदि वास्तव में वह ईश्वर प्रदत होती, तो भिन्न-भिन्न समाज के व्यक्तियों की अन्तरात्माएँ भिन्न-भिन्न न होतीं। ईश्वर एक है, यदि वास्तव में उसने धर्म के नियम बनाए हैं। एक समाज के व्यक्ति की अन्तरात्मा प्रायः दूसरे समाज के व्यक्ति की अन्तरात्मा के अनुसार नहीं होती। मनुष्य की अन्तरात्मा केवल उसी बात को अनुचित समझती है जिसको समाज अनुचित समझता है। इसलिए यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि अन्तरात्मा समाज द्वारा निर्मित है। मनुष्य के हृदय में समाज के नियमों के प्रति अन्धविश्वास और पूर्ण श्रद्धा को ही अन्तरात्मा कहते हैं। समाज से पृथक उसका कोई अस्तित्व नहीं है। 
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ज्ञान

--------- अरुण हिंदी शब्दकोश : ज्ञान :  जहाँ मनुष्य बाह्य परिवर्तन और आन्तरिक शून्य के भेदभाव से ऊपर उठ जाता है, ज्ञान की अन्तिम सीढ़ी है। ध्यान देने योग्य है कि, उन्माद अस्थायी होता है और ज्ञान स्थायी। कुछ क्षणों के लिए ज्ञान लोप हो सकता है; पर वह मिटना नहीं। जब पागलपन का प्रहार होता है, ज्ञान लोप होता हुआ विदित होता है; पर उन्माद बीत जाने के बाद ही ज्ञान स्पष्ट हो जाता है।

प्रेम

--------- अरुण हिंदी शब्दकोश : प्रेम :   प्रेम मनुष्य का निर्धारित लक्ष्य है। कम्पन और कम्पन में सुख, प्यास और तृप्ति-प्रेम का क्षेत्र यही है। जीवन में प्रेम प्रधान जीवन है। जीवन में आवश्यक है कि एक-दूसरे की आत्मा को अच्छी तरह से जान लेना,-एक-दूसरे से प्रगाढ़ सहानुभूति और एक-दूसरे के अस्तित्व को एक कर देना ही प्रेम है, जीवन का सर्वसुन्दर लक्ष्य है। प्रेम के सन्दर्भ में विपरीतलिंगी प्रेम यानी स्त्री-पुरुश अथवा लड़की-लड़का के प्रेम को समाज बंद-खुले विभिन्न नज़रिए से देखता है। दरअसल, स्त्री और पुरुष का सम्बन्ध केवल संसार में ही होता है। संसार से पृथक् दोनों ही भिन्न-भिन्न आत्माएँ हैं। संसार में भी स्त्री और पुरुष में आत्मा का ऐक्य संभव नहीं है। प्रेम तो केवल आत्मा की घनिष्ठता है। वह घनिष्ठता कोई बड़े महत्त्व की वस्तु नहीं होती, वह टूट भी सकती है। इसीलिए कहा गया है कि उस घनिष्ठता के टूटने पर अपने जीवन को दुखमय बना लेना कोई बुद्धिमत्ता नहीं है। 

आदर

--------- अरुण हिंदी शब्दकोश : आदर :   एक तरह से आदर एक विनम्र भाव है। अर्थात् सामाजिक शिष्टाचार। प्रबुद्ध लेखिका एवं सम्पादक मृणाल पाण्डेय मानती हैं कि, ‘‘हर समाज में शिष्टाचार से जुड़े उदात्त मूल्यों की जड़ मनुष्य की आनुवांशिकी जरूरतों में है। मसलन अपनी नस्ल और कबीले का अस्तित्व बरकरार रखना एक आदिम इच्छा है और इसी के साथ बुजुर्गों के प्रति शारीरिक भंगिमा और वाणी द्वारा आदर व्यक्त करना जुड़ा हुआ है। युवाओं के बरअक़्स शारीरिक रूप से अशक़्त और अनाकर्षक होते हुए भी बुजुर्ग लोग हर आदिम समाज में जीवन से जुड़े बहुमूल्य और जीवनरक्षक अनुभवों की एक खान सरीखे होते हैं और उनकी उपस्थिति और निर्देश बच्चों को संस्कारित करने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इसलिए समाज में खास तरह के नियमों द्वारा उनका परिरक्षण और उनके प्रति आदर की अभिव्यक्ति अनिवार्य बने हैं।’’

चारित्रिक दोष

--------- अरुण हिंदी शब्दकोश : चारित्रिक दोष : हमारे व्यक्तित्व और व्यवहार में जो कपटता और लपंटपन है, उस प्रकृति को जनसामान्य की दृष्टि में चारित्रिक दोष कहा गया है। यह सोलह आना सच है कि किसी तरह की बुराई, भ्रष्टाचार, अन्याय, शोषण, बेईमानी, अनैतिक आचरण आदि में संलिप्तता का सीधा अर्थ है कि उस व्यक्ति-विशेष में जन्मजात यह विकृतियाँ मौजूद हैं, दुष्टता के बीजगुण विद्यमान हैं। यानी सचाई की बात करने वाला इंसान यदि बाद में झूठा साबित होता है तो यह हमारी कठिनाई है कि हममें बेईमानी और सचाई में फर्क करने की क्षमता नहीं है; अन्यथा जिस तरह लाल रंग हरे रंग में नहीं बदल सकता है और उजला काले रंग का नहीं हो सकता है; उसी तरह कोई नैतिक रूप से सजग व्यक्ति ग़लत और बेईमान भी नहीं हो सकता है। संचार की यह बड़ी सीमा है कि वह किसी बात को कई तरह से और कई रूपों में कह सकता है, किन्तु किसी को उसे मानने हेतु पूर्णतया बाध्य कतई नहीं कर सकता है।

उत्तर-परिवार

---------- अरुण हिंदी शब्दकोश : उत्तर-परिवार :   सबसे पहले ‘उत्तर’ शब्द पर विचार करें, तो यह शब्द अनेकार्थी है, किन्तु हिन्दी में अव्यय के रूप में इसका अर्थ पीछे अथवा बाद होता है। कोई भी समाज, चाहे वह सामंती, पूँजीवादी या समाजवादी हो, पारिवारिक स्थायित्व की संरक्षा एवं एकता में रुचि रखता है। यह विभिन्न तरीकों-‘कानूनी, नैतिक, धार्मिक, आर्थिक, माता-पिता के अधिकार और अनुग्रह को परिभाषित कर’-में परिवार के कार्यों की स्वीकृति प्रदान करता है। लेकिन, समाज की आर्थिक संरचना, परिवार पर गुणात्मक प्रभाव छोड़ती है। पूँजीवाद स्वाभाविक रूप से उन अवश्यंभावी परिणामों से, वैवाहिक एवं पारिवारिक रिश्तों को मुक्त करने में असमर्थ है, जो समाज में निजी सम्पत्ति के नियम के कारण उदित हो जाते हैं। इसके अलावा बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, दैनिक जरूरतों की चीजों में मूल्य-वृद्धि, जीवित रहने की लागत में वृद्धि, महँगी चिकित्सा सेवा और शिक्षा इत्यादि घटनाक्रियाएँ उन रिश्तों को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार, परिवार कल्याण की सतह के नीचे अक्सर नैतिक नपुंसकता छिपी रहती है। नैतिक शुद्धता का सिद्धान्त पृष्ठभूमि में च

जन-मुक्ति

---------- अरुण हिंदी शब्दकोश : जन-मुक्ति :   आज मनुष्य का सबसे बड़ा और तात्कालिक मुक्ति-संग्राम राज्य से मुक्ति का ही है। इस ओर ‘यूटोपिया’ तथा राज्यविहीन समाज की कल्पना की जाती रही है। ‘अनार्किस्ट’ विचारधारा ने सबसे संगठित रूप से इस पर विचार किया है। उसका असर मार्क्स के विचारों पर भी दिखाई देता है पर वास्तव में ज्यों-ज्यों राज्य का अनिवार्यतः आतातायी होना प्रमाणित होता गया है-राज्य सामंतवादी हो, पूँजीवादी या समाजवादी त्यों-त्यों इस ओर लोगों का ध्यान जा रहा है। जन भी अपनी मासूम सोच में राज्य और राज्यनीति को अपना विरोधी समझता जा रहा है। भारत के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर केन्द्रित ‘भारत की जनकथा’ पुस्तक के लेखक लाल बहादुर वर्मा की दृष्टि में, ‘‘मुक्ति साध्य भी है और साधन भी। साध्य के रूप में वह परमगति है, हर तरह के बंधनों से मुक्ति है, परिनिर्वाण है। साधन के रूप में वह भौतिक, बौद्धिक और आत्मिक (आध्यात्मिक की बात नहीं की जा रही) आनन्द का साधन है। इस मुक्ति से सभी अपनी संभावनाओं को उजागर करने की ओर अग्रसर हो सकते हैं। इस स्थिति में ‘सबमें उसकी क्षमतानुसार और सबको उसकी आवश्यकता