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Showing posts from 2015

बीता बचपन, अपना स्वर्णयुग

                          तेम कुनुन्ग ------------------------  जि़ंदगी की सबसे हसीन पल बचपन है जो लौट कर वापस नहीं आने वाले हैं। बस उसकी याद ही केवल रह जाती है। जिस किसी ने भी उस हसीन पल का नहीं जिया है उनलोगों ने बचपन के उस अमृत-रस को नहीं पिया है। वह जि़न्दगी भी क्या जि़न्दगी जिसमें अपना बचपन ही खो दिया है। ऐसे लोगों पर मुझे दया आती है जो अपना बचपन ही खो दिए हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल को स्वर्ण-युग माना गया है। हमारी दृष्टि में हसीन पलों वाला बचपन भी स्वर्ण-युग से कम नहीं है। जि़न्दगी में सभी मनुष्य के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं और यही जीवन का रीति-रिवाज है अर्थात् ‘कभी खुशी कभी कम, कभी ज्यादा कभी कम’। संसार के सभी लोग अपने निजी कामों में व्यस्त रहते हैं।। अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं। अपने परिवार, पत्नी, बच्चे, रिश्तेदारों आदि के बारे में सोचते हैं। अपने व्यस्ततम स्थिति या अपने भविष्य आदि को लेकर परेशान होते हैं कि कैसे अपने घर-बार को देखें? कैसे अपने बच्चों को एक अच्छे स्कूल म...

हाम्रो अरुणाचल

--------------------- अपना अरुणाचल प्रदेश तिरासी हजार सात सौ तैतालिस वर्ग किलोमीटर(83, 743 ेुउ) भूभाग में फैला हुआ है। इसकी राजधानी ईटानगर है, तो नजदीकी शहर नाहर लगुन। ईटानगर और नाहर लगुन इतने करीब हैं कि इन्हें जुड़वा राजधानी तक कहा जाता है। ईटानगर पहुँचने के लिए रेलमार्ग का नजदीकी प्लेटफार्म नाहर लगुन ही है। पिछले वर्ष यानी वर्ष 2015 में शुरू हुई रेलवे-यातायात ने अरुणाचल को अन्य प्रदेशों से जोड़ने की दृष्टि से सुगम-सहज माध्यम उपलब्ध कराया है।  अरुणाचल के रहवासियों की कुल आबादी लगभग 11 लाख है। इस प्रदेश में नए-पुराने मिलाकर कुल 16 जिले हैं। 1) अन्जाव(जिला मुख्यालय: हवाई), 2) चांगलांग(जिला मुख्यालय: चांगलांग), 3) दिबांग घाटी(अनिनी), 4) पूर्वी सियांग(जिला मुख्यालय: पासीघाट), 5) पूर्वी कमेंग(जिला मुख्यालय: सेपा), 6) कुरूंग कुमेय(जिला मुख्यालय: कोलोरियांग), 7) लोहित(जिला मुख्यालय: तेजू) 8) निचली दिबांग घाटी(जिला मुख्यालय: रोइंग), 9) निचली सुबनसिरी(जिला मुख्यालय: जिरो), 10) पापुम-पारे(दोईमुख), 11) तवांग(जिला मुख्यालय: तवांग), 12) तिराप(जिला मुख्यालय: खोंसा), 13) ऊपरी सियांग...

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अरुणाई का ‘बाल अंक’

शुभ प्रथमा

नमस्कार! अरुणाई: हाम्रो अरुणाचल’  एक आॅनलाइन ब्लाॅग है। पूर्वोत्तर की ज़मीं पर बसे अरुणाचल के युवजन को समर्पित इस ब्लाॅग पर हम अपने सभी आगंतुकों का स्वागत करते हैं। अरुणाचल के इकलौते विश्वविद्वाालय ‘राजीव गांधी विश्वविद्वाालय’ के हिन्दी विभाग में सहायक प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति के पश्चात यह मेरा व्यक्तिगत प्रयास है। अरुणाचल के युवाओं की इच्छा, आकांक्षा, कल्पना और स्वप्न को साकार करने के उद्देश्य से यह विनम्र प्रयास कितना सराहनीय अथवा उल्लेखनीय बन सकेगाा, यह आप तय करेंगे; लेकिन यह अपनी ओर से एक सार्थक पहलकदमी अवश्य है।  मित्रो, अरुणाचल के युवजन की अनुभूति, संवेदना, भावना, विचार, दृष्टिकोण आदि के माध्यम से हम आपतक पहुंचेंगे। हम आपको यह जना सकेंगे कि पूर्वोत्तर की माटी में कितना दमखम, सामथ्र्य, योग्यता, गुण, प्रतिभा, आदि है जो अनमोल है, बेशकीमती है। अरुणाचल में भाषा की बहुलता एवं जीवंत उपस्थिति दर्शनीय है और अपनेआप में विशिष्ट भी। यहां के जनजातीय समाज में एकरूपीय अभिन्नता है, सहमेल, सहभाव एवं साझाापन है; तो भीतरी संरचना एवं आन्तरिक बनावट-बुनावट में अनग...