तेम कुनुन्ग ------------------------ जि़ंदगी की सबसे हसीन पल बचपन है जो लौट कर वापस नहीं आने वाले हैं। बस उसकी याद ही केवल रह जाती है। जिस किसी ने भी उस हसीन पल का नहीं जिया है उनलोगों ने बचपन के उस अमृत-रस को नहीं पिया है। वह जि़न्दगी भी क्या जि़न्दगी जिसमें अपना बचपन ही खो दिया है। ऐसे लोगों पर मुझे दया आती है जो अपना बचपन ही खो दिए हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल को स्वर्ण-युग माना गया है। हमारी दृष्टि में हसीन पलों वाला बचपन भी स्वर्ण-युग से कम नहीं है। जि़न्दगी में सभी मनुष्य के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं और यही जीवन का रीति-रिवाज है अर्थात् ‘कभी खुशी कभी कम, कभी ज्यादा कभी कम’। संसार के सभी लोग अपने निजी कामों में व्यस्त रहते हैं।। अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं। अपने परिवार, पत्नी, बच्चे, रिश्तेदारों आदि के बारे में सोचते हैं। अपने व्यस्ततम स्थिति या अपने भविष्य आदि को लेकर परेशान होते हैं कि कैसे अपने घर-बार को देखें? कैसे अपने बच्चों को एक अच्छे स्कूल म...