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Showing posts from 2016

फंक्शनल हिंदी में करियर

                 हिंदी हमारी राष्टभाषा है, बावजूद इस विविधतापूर्ण देश में अनेक भाषाएं और बोलियां प्रचलित हैं, वहीं दूसरी ओर हिंदी बोलने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।  अरुणाचल प्रदेश अवस्थित राजीव गांधी विश्वविद्याालय में फंक्शनल हिंदी के सहायक प्राध्यापक राजीव रंजन प्रसाद की राय में-‘‘ भारत के सांविधानिक नक्शे में हिंदी भाषा राजभाषा के रूप में मान्य है। यह राष्ट्रभाषा है और सम्पर्क भाषा भी। राजभाषा यानी अंग्रेजी के सहप्रयोग के साथ राजकीय विधान, कार्यालयी काम-काज, अकादमिक लिखा-पढ़ी, ज्ञान-विज्ञान, अन्तरानुशासनिक-अन्तर्सांस्कृतिक प्रचार-प्रसार इत्यादि में सांविधानिक रूप से मान्यता प्राप्त एक वैध भाषा। वह भाषा जिसके बारे में भारतीय संविधान में अनुच्छेद 343 से अनुच्छेद 351 के अन्तर्गत काफी कुछ लिखित एवं वर्णित है। यही नहीं अनुच्छेद 120 में संसद में भाषा-प्रयोग के बारे में हिंदी की स्थिति स्पष्ट है, तो अनुच्छेद 210 में विधान-सभा एवं विधान-परिषद में हिंदी के प्रयोग को लेकर ठोस दिशा-निर्देश...

गाँव

......  हरीशकुमार शर्मा * गाँव! अब नहीं रहा सुख-शान्ति का ठाँव। लुटा गाँव, पिटे लोग; मनुजता को लगे रोग। लुट गया गाँव- लूटा दरोगा ने गाँव का आत्मसम्मान, वोट ने अमन और ईमान तथा सरकार ने गाँव का प्रधान; लूट ले गया पटवारी- गाँव का सुख-चैन और बो गया बीज कलह के- डालकर धरा में निशान। लुट गयीं परम्पराएँ,  लु ट गये आचार; लुटी मान्यताएँ, सहज विचार; अभाव लूट ले गए लोकाचार- धनिए के पत्तों से मट्ठे तक को लगने लगी तोल, सभी कुछ मिलने लगा मोल! टलिया भी ले गया लूटकर, बगों को काट- कोयल के सुरीले बोल। सभी कुछ  लु ट गया! शंकाएँ लूट ले गयीं अलाव, जनसंख्या आदमी का भाव, और समृद्धि? उसे तो कहाँ तक गिनाऊँ? किस-किसको बताऊँ? मुकदमेदारी ने लूटा,  बीमारी रिश्वत ने लूटा, बढ़ती जनसंख्या ने लूटा, नित्य नयी भ्रष्टाचार शराब ने लूटा, और न जाने कितनों ही ने लूटा! सबने लूटा- सबकुछ लूटा, जी भर लूटा, पर सर्वाधिक लूटा उसके अपने निवासियों ने जो लूट ले गये गाँव की आत्मा- शहरों को मटमैली कर  और छोड़ गये खाली गाँव। लेकिन इतने पर भी मरा नहीं है गाँव; अभी जिन...